अगस्त के पहले दिन सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी आरक्षण में जातिगत विभाजन को मान्यता दी, जिससे देश में दलित राजनीति में हलचल मच गई। कोर्ट ने कहा कि इस निर्णय से अत्यंत पिछड़ी जातियों को फायदा होगा। जजों ने उल्लेख किया कि कुछ जातियाँ सीवर सफाई का काम करती हैं और कुछ बुनकर का कार्य करती हैं, और ये सभी अनुसूचित जाति में आती हैं। छुआछूत का सामना करने वाले इन जातियों में से कुछ को अपने पेशे के कारण अधिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले को बीजेपी और विपक्ष दोनों ने स्वागत की भावना के साथ देखा।
कांग्रेस के दो मुख्यमंत्रियों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का खुलकर समर्थन किया, लेकिन दलित नेताओं ने इसे लेकर अपनी असहमति स्पष्ट कर दी। मायावती और लोजपा (रामविलास) जैसे प्रमुख दलित नेताओं ने इस फैसले का विरोध किया। बीजेपी ने संविधान और आरक्षण को लेकर हुए विवाद के चलते सतर्कता बरतते हुए, 9 अगस्त को एससी-एसटी सांसदों की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कराई। पीएम ने आश्वस्त किया कि इस फैसले को लागू नहीं किया जाएगा। उसी दिन केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भी इस फैसले को लागू न करने का निर्णय लिया। बीजेपी के इस कदम ने इंडिया गठबंधन के दलों में हलचल पैदा कर दी, और कांग्रेस तथा समाजवादी पार्टी ने तेजी से फैसले किए। इस स्थिति ने दलित कोटे को लेकर देश की राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया।
कांग्रेस का बदला रुख
सुप्रीम कोर्ट ने दलित सब कोटे के फैसले पर मुहर लगाते ही तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंथ रेड्डी ने ऐलान किया कि उनके राज्य में भविष्य की सभी भर्तियों में इस फैसले का पालन किया जाएगा। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने भी कहा कि उनके राज्य में जल्दी ही इस फैसले को लागू किया जाएगा। चूंकि इन दोनों राज्यों में कांग्रेस की सरकारें हैं, इस फैसले को लेकर पार्टी का समर्थन समझा जा रहा था, हालांकि कांग्रेस की ओर से आधिकारिक बयान जारी नहीं हुआ था।
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्राओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके और सेफोलॉजिस्ट के रूप में प्रसिद्ध योगेंद्र यादव ने इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख लिखकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सराहना की। इस लेख के बाद उम्मीद जताई जा रही थी कि राहुल गांधी भी जल्द ही इस फैसले की तारीफ करेंगे। लेकिन 9 अगस्त को बीजेपी ने इस फैसले से दूरी बना ली और केंद्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि वे भीम राव आंबेडकर के संविधान के अनुसार आरक्षण पर भरोसा रखती हैं। इस बदलती स्थिति के चलते कांग्रेस ने भी अपनी नीति में बदलाव किया और 10 अगस्त को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने दलित सब कोटे के फैसले का विरोध किया।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के भीतर उप-वर्गीकरण और ‘क्रीमी लेयर’ से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर असहमति व्यक्त की। उन्होंने शनिवार को कहा कि सरकार को इस निर्णय के तुरंत बाद संसद के माध्यम से इसे निरस्त कर देना चाहिए था। खरगे ने भारतीय जनता पार्टी पर आरक्षण को समाप्त करने का आरोप लगाया और यह भी कहा कि क्रीमी लेयर के फैसले को मान्यता नहीं दी जानी चाहिए। उनका तर्क था कि जब तक छुआछूत जारी है, तब तक आरक्षण की आवश्यकता बनी रहेगी।
समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव का गोल-मोल जवाब
समाजवादी पार्टी पर दलितों द्वारा लंबे समय से आरोप लगाया जाता रहा है कि उसने प्रमोशन में आरक्षण का विरोध किया है। इसके साथ ही, मायावती सरकार द्वारा बनाए गए जिलों और पार्कों के नाम बदलने का भी आरोप लगा है। इसके बावजूद, इस साल हुए लोकसभा चुनावों में दलित वोटों के आधार पर समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में बड़ी सफलता हासिल की। जाहिर है कि अखिलेश यादव को अपने पीडीए फार्मूले को मजबूत रखने के लिए इस मुद्दे पर कोई कदम उठाना पड़ा







