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जिला आबकारी अधिकारी बना शराब ठेकेदार, एक तरफ ग्रामीण क्षेत्रों में कच्ची शराब पर करते हैं कार्यवाही और जिला मुख्यालय में धड़ल्ले से बिकवाते है अवैध शराब

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मण्डला। शराबबंदी के बावजूद जिले में अवैध शराब का कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है। एक तरफ शासन और प्रशासन जनता को शराबबंदी का सपना दिखा रहे हैं वहीं दूसरी ओर आबकारी विभाग की मिलीभगत से अवैध शराब की बिक्री को बढ़ावा मिल रहा है। नर्मदा तट के 5 किलोमीटर के दायरे में शराब विक्रय पर प्रतिबंध लगाने का जो ऐलान किया गया था, वह अब हास्यास्पद बनकर रह गया है। यह पूरी स्थिति उन अधिकारियों की कायरता को उजागर करती है जो यह दावा करते थे कि मंडला में शराबबंदी से नर्मदा को स्वच्छ रखा जाएगा। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के आदेशों के बावजूद लगभग 8 साल पहले नर्मदा के आस-पास शराब की दुकानों को बंद करने का दावा किया गया था, लेकिन अब यह फर्जी कदम साबित हो रहा है। असलियत में शराब का अवैध कारोबार दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है? क्या यह शराब माफिया के साथ साठगांठ का नतीजा नहीं है?

शराबबंदी का ढोंग, अवैध शराब का साम्राज्य

जब मंडला शहर में शराब विक्रय पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की गई थी, तो प्रशासन और आबकारी विभाग ने दावा किया था कि अब शराब की अवैध बिक्री पर नकेल कसी जाएगी। लेकिन आज स्थिति यह है कि शहर के कोने-कोने में अवैध शराब खुलेआम बिक रही है। बायपास, बस स्टैंड, पुराना डिंडोरी, झूला पुल, सकवाह, बिंझिया और कटरा जैसे प्रमुख इलाकों में दिन-रात शराब का व्यापार चल रहा है। घरों में शराब की अवैध सप्लाई, ढाबों से लेकर पान की गुमटियों तक में शराब बेची जा रही है। शराब की बोतलें खुलेआम टपरानुमा दुकानों पर परोसी जा रही हैं। यह अराजकता अधिकारियों की निरंकुशताका नतीजा है, या फिर यह कोई सुनियोजित काले कारोबार का हिस्सा है?

आबकारी विभाग की मिलीभगत: शराब माफिया का संरक्षण

अगर आप सोचते हैं कि पुलिस विभाग इस मामले में सख्ती दिखा रहा है, तो आप गलत हैं। भले ही समय-समय पर पुलिस द्वारा छापेमारी की जाती है, लेकिन आबकारी विभाग की साठगांठ और प्रशासनिक ढील के कारण कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आते। आबकारी विभाग के अधिकारी या तो इस अवैध कारोबार को देख नहीं पाते या फिर जानबूझकर आंखें मूंदकर बैठे रहते हैं। पेट्रोलिंग टीम भी केवल नमक-मसाला की कार्रवाई करती है, ताकि हकीकत पर पर्दा डाला जा सके।

अब सवाल उठता है कि यह अवैध शराब तस्करी और बिक्री की नेटवर्क इतनी बड़ी कैसे बन गई? क्या आबकारी विभाग के अधिकारी इस धंधे में शामिल हैं? क्या उन्होंने शराब माफिया को अपने साथ ले लिया है? यह सवाल मंडला के आम नागरिकों के मन में हर दिन उठ रहा है। क्या सत्ताधारी दलों के दबाव के कारण इस व्यापार पर कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है? या फिर यह पूरी व्यवस्था भ्रष्टाचार और काले धन की हद तक जा पहुंची है?

दावों के विपरीत सच्चाई: प्रशासन और पुलिस की नाकामी

इतना सब होने के बावजूद स्थानीय प्रशासन और आबकारी विभाग हर बार बयान देते हैं कि कड़ी कार्रवाई की जाएगी। लेकिन वास्तविकता यह है कि प्रशासन की कार्रवाई सिर्फ एक दिखावा बनकर रह जाती है। कोई भी कार्रवाई रुकती नहीं है, क्योंकि अधिकारियों और माफिया की साठगांठ और आर्थिक लाभ के चलते पूरी व्यवस्था प्रभावित हो चुकी है। क्या मंडला की सडक़ें, ढाबे और गुमटियां अब शराब माफिया की अड्डे बन गई हैं? क्या प्रशासन अपने कर्मचारियों को बिना डर अवैध शराब कारोबार को बढ़ावा देने के लिए छोड़ चुका है?

क्या अब भी कोई उम्मीद बाकी है?

किसे दोष दें? क्या यह सरकारी नीतियों की नाकामी है या फिर सिस्टम में फैला भ्रष्टाचार? क्या शराब माफिया से निपटने के लिए अब प्रशासन को सख्त कदम उठाने होंगे? क्या आबकारी विभाग और पुलिस विभाग को इस काले कारोबार को रोकने के लिए एकजुट होकर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए? यदि शराब की अवैध बिक्री ऐसे ही चलती रही, तो मंडला में न केवल नर्मदा सफाई अभियान विफल होगा, बल्कि यह स्थानीय प्रशासन की असंवेदनशीलता और माफिया की शक्ति को और भी मजबूत करेगा।

अंत में यही सवाल

क्या मंडला शहर में शराबबंदी की दिशा में कोई सुधार होगा या यह एक और खोखला वादा बनकर रह जाएगा? कब तक माफिया के हाथों में खेलती रहेगी आम जनता की जिंदगी?

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